Monday, 19 December 2016

जब सब कुछ कम था



कितने अच्छे थे वो दिन
जब उतना नहीं था सब
जितना कि आज है
एक जोड़ी जूते
पुराना बस्ता
पुराने पन्नो से बनी नई कापियां
भाई बहनों की पुरानी किताबें
एक रुपये जैसे कि तमाम संपत्ति
टूटी चूड़ियों, पत्थरों के खेल खिलौने
और
मां का बनाया स्वेटर
स्नेह की गर्माहट देता था
सच आज सब कुछ है
कितनी किताबें
कितनी डायरी
मह्न्गे फोन
सुविधा का हर सामान
बटन दबाने की दूरी पर
बड़ी बड़ी गाड़ियाँ
पर वो दूर तक चल कर
मॉं का एक काम कर देने की खुशी नहीं देते
दिन भर नीम की छांव मे जो आराम था
एयर कन्डीश्नर नहीं देते
सच बहुत अच्छे थे वो दिन
जब सब कुछ कम था  
...........संयुक्ता


5 comments:

  1. मन की बात को शब्दों में पिरोया है .... बहुत सुन्दर रचना ...

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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