Saturday 2 April 2016

कवियित्री नहीं हूँ


मैं नियमों के बंधन से परे
आकाश धरती की दूरी
नाप लेती हूँ कलम से
दसों दिशाओं को
मध्य में समेटती
हथेलियों से विस्तार देती हूँ

लहरा देती हूँ आँचल

कि चलती हैं हवाएं
बो देती हूँ हरियाली
कि मरूथल भी खिल जाए
सींच देती हूँ मुस्कान
भूख से तड़पते चेहरों पर

कि लहरायें कुछ उम्मीदें नाउम्मीदी पर
रस छंद अलंकारों से अनभिज्ञ
व्याकरण की परिधि से परे
रचना करती हूँ
इसीलिए

रचनाकार हूँ
कवियित्री नहीं हूँ।।।

Friday 1 April 2016

आओ खेलें चाँद से हम तुम


नीली झील में छिपकर
बैठा है जो चाँद
तुम हाथ बढ़ाकर हटा दो पानी
निकाल लाओ मेरे लिए उसे
और पहना दो
कभी कलाइयों में कंगन सा
कभी कानों में बालियों सा
या अंगूठी में मोती सा जड़ दो

और

बादलों को हटा कर कुछ तारे तोड़ लेना
टांक देना मेरी पायल में सितारों के घुँघरू

यूँ ही खेलें चाँद तारों से हम तुम
यूँ ही रोके रहें रात
और फिर छोड़ दें इसे
सागर तक बहते दरिया में

.....संयुक्ता

अपनी पराजय से खुश तो हो न

खुश तो हो न तुम
कि समाप्त कर चुके हो अब

मेरे जीवन से मेरे जीवन को
फूंक दिए सब सुनहरे ख्व़ाब
मेरी पलकों के साथ
छीन ली सब संभावनाएं
सुखद जीवन की
जला दी मेरी डोली
जिसकी कल्पना कर सदा मुस्कुराया
परिवार मेरा
अंगार कर दी मुस्कान मेरी
जिसे बरसों पाला है संवारा है
मेरे बाबा ने
राख कर दी चूड़ियों की खनक
खुश तो हो न तुम

क्यूंकि
पायल की छनक पर
अब नहीं पलटेगा कोई
तुमने प्रेम किया मुझे
प्रेम का उपहार

सारा संसार न भूल पायेगा कभी
एक बदसूरत झुलसा हुआ शरीर
माँ बाबा के आंसू
संसार के सामने निरुत्तर शर्मिंदा
मेरा कोई दोष न होते हुए
तुम्हारी वीभत्स मानसिकता को
सदा ढोयेंगे वे
मैं समाप्त भी कर लूँ स्वयं को
परन्तु समाप्त न होगी मेरे देह की जलन
बाबा के स्वप्नों से
मेरी तड़प के दाग जायेंगे नहीं
माँ के आँचल से
लेकिन
अपनी मर्दानगी दिखाकर
अपना प्रेम अपना अधिकार जताकर
खुश तो हो न तुम

सच कहो
क्या देख पाओगे तुम
मेरी तरह अपनी बहन को
पोंछ सकोगे यही आंसू
अपनी बीवी की आँखों से
नहीं मेरे अज्ञात प्रेमी
तुममें इतनी शक्ति नहीं
पुरुष हो तुम
पर मेरे बाबा की तरह नहीं
तुम लाचार हो पराजित हो निर्बल हो
तभी जीत न सके
और अब कहो
अपनी इस पराजय से
खुश तो हो न तुम


.....संयुक्ता

बाकी तो सब छूट गया

डूब रहा है सूरज

रफ़्तार से गुज़र रहे पेड़

जो छूट रहे हैं पीछे

और मैं बढ़ रही हूँ आगे

अपने साथ कुछ चीजें लिए


बैग में एक डायरी

जिसमें हमारी तमाम मुलाकातें बिछीं हैं

जैसी की तैसी अक्षरों की शक्ल में

बतियाती हैं जीने लगती हैं सामने

जहाँ भाषा तुम्हारी हस्ताक्षर मेरे थे

वो जो डायरी तुम्हारी थी

अब मेरी है


वहीँ दो पन्नों के बीच छिपी

हमारी एक मुस्कुराती तस्वीर

जैसे समय के दो छोर से मुस्कुराती

दो मजबूरियां


अपने कन्धों पर वो आसमानी दुपट्टा

जो तुम ले आये थे पिछले बरस

परदेस से

वो एक ख़ास सी मुस्कराहट

जो सिर्फ मेरी थी

अपनी दोनों हथेलियों के बीच तुम्हारा चेहरा

अपनी आँखों में तुम्हारे सावन भर लायी हूँ

कि यही तो होंगे न

मेरे पतझड़ के ज़मीन में नमी


तुम्हारा प्यार अब भी है मेरे मन में

आत्मा में तुम्हारी सच्चाई है

बस

मोबाइल में नंबर नहीं अब तुम्हारा

तुम्हारी डायरी वो पते वाला पन्ना

छोड़ आई हूँ सिरहाने तुम्हारे


और हाँ

एक तुम्हारा रुमाल भी है मेरे पास

जो भीगा हुआ है अब भी

बाकी तो सब छूट गया

शहर तुम्हारा