मैं नियमों के बंधन से परे
आकाश धरती की दूरी
नाप लेती हूँ कलम से
दसों दिशाओं को
मध्य में समेटती
हथेलियों से विस्तार देती हूँ
लहरा देती हूँ आँचल
कि चलती हैं हवाएं
बो देती हूँ हरियाली
कि मरूथल भी खिल जाए
सींच देती हूँ मुस्कान
भूख से तड़पते चेहरों पर
कि लहरायें कुछ उम्मीदें नाउम्मीदी पर
रस छंद अलंकारों से अनभिज्ञ
व्याकरण की परिधि से परे
रचना करती हूँ
इसीलिए
रचनाकार हूँ
कवियित्री नहीं हूँ।।।