किलोमीटर की धुंध
में
ओझल हो गए मन से
कुछ अधिकार हमारे
खो गयी सफ़र में
चिंताएं,फिक्रें, ख़याल सब
मिलते तो हैं मंजिलों पर
लेकिन अब साँझा नहीं
मंजिलें अपनी अपनी हो गयीं
ओझल हो गए मन से
कुछ अधिकार हमारे
खो गयी सफ़र में
चिंताएं,फिक्रें, ख़याल सब
मिलते तो हैं मंजिलों पर
लेकिन अब साँझा नहीं
मंजिलें अपनी अपनी हो गयीं
अब जब हम मिलते
हैं
पूछ लेते हैं हाल चाल
घर-बार के
रिश्ते परिवार के
लेकिन अब
कहाँ पूछते हो तुम
और कहाँ कहती हूँ मैं
हाल मेरे मन के
अब जब हम मिलते हैं
प्यार
नहीं पूछ लेते हैं हाल चाल
घर-बार के
रिश्ते परिवार के
लेकिन अब
कहाँ पूछते हो तुम
और कहाँ कहती हूँ मैं
हाल मेरे मन के
अब जब हम मिलते हैं
औपचारिकताएं निभाते हैं.......
समय एक जैसा नहीं रहता, सबकुछ बदल जाता है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
आभार आपका
Deleteबदलते वक्त के साथ बहुत कुछ बदल गया हैं। रिश्तों की परिभाषा भी। अब तो एक दुसरे कहते रहिए हम कितने बदले और तुम कितने।
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
वाकई
Delete