Thursday 9 February 2017

ऐसे तुम बहुत बुरे



एक मुलाकात
थोड़ी सी बात
बस कुछ हालचाल
कहना सुनना पूछना बताना
सुबह शाम का आना जाना
भोर के गीत चंद्रमा से सुनकर
जैसे के तैसे तुम्हें सुनाना
बगिया में कितने फूल खिले
कितने बीजों में अंकुर फूटे
गिन गिन कर सब तुम्हें बताना
ऐसी मैं
सदा फिक्रमंद
और
बुलाने पर भी न आना
बिना बताए चले जाना
नख से शिख तक
बिखरे उलझे अव्यवस्थित
बेपरवाह बेतरतीब अनजान
ऐसे तुम
बहुत बुरे

.........संयुक्ता

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