कितने
अच्छे थे वो दिन
जब
उतना नहीं था सब
जितना
कि आज है
एक
जोड़ी जूते
पुराना
बस्ता
पुराने
पन्नो से बनी नई कापियां
भाई
बहनों की पुरानी किताबें
एक
रुपये जैसे कि तमाम संपत्ति
टूटी
चूड़ियों, पत्थरों के खेल खिलौने
और
मां
का बनाया स्वेटर
स्नेह
की गर्माहट देता था
सच आज
सब कुछ है
कितनी
किताबें
कितनी
डायरी
मह्न्गे
फोन
सुविधा
का हर सामान
बटन
दबाने की दूरी पर
बड़ी
बड़ी गाड़ियाँ
पर
वो दूर तक चल कर
मॉं
का एक काम कर देने की खुशी नहीं देते
दिन
भर नीम की छांव मे जो आराम था
एयर
कन्डीश्नर नहीं देते
सच बहुत
अच्छे थे वो दिन
जब
सब कुछ कम था
...........संयुक्ता
Wow bahut khub
ReplyDeleteआभार सुधा जी
Deleteमन की बात को शब्दों में पिरोया है .... बहुत सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
DeleteBahut khoob
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