नीली झील में छिपकर
बैठा है जो चाँद
तुम हाथ बढ़ाकर हटा दो पानी
निकाल लाओ मेरे लिए उसे
और पहना दो
कभी कलाइयों में कंगन सा
कभी कानों में बालियों सा
या अंगूठी में मोती सा जड़ दो
और
बादलों को हटा कर कुछ तारे तोड़ लेना
टांक देना मेरी पायल में सितारों के घुँघरू
यूँ ही खेलें चाँद तारों से हम तुम
यूँ ही रोके रहें रात
और फिर छोड़ दें इसे
सागर तक बहते दरिया में
.....संयुक्ता
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना