Saturday 2 April 2016

कवियित्री नहीं हूँ


मैं नियमों के बंधन से परे
आकाश धरती की दूरी
नाप लेती हूँ कलम से
दसों दिशाओं को
मध्य में समेटती
हथेलियों से विस्तार देती हूँ

लहरा देती हूँ आँचल

कि चलती हैं हवाएं
बो देती हूँ हरियाली
कि मरूथल भी खिल जाए
सींच देती हूँ मुस्कान
भूख से तड़पते चेहरों पर

कि लहरायें कुछ उम्मीदें नाउम्मीदी पर
रस छंद अलंकारों से अनभिज्ञ
व्याकरण की परिधि से परे
रचना करती हूँ
इसीलिए

रचनाकार हूँ
कवियित्री नहीं हूँ।।।

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